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सात फेरो के बिना विवाह वैध नही, इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला !!

हाईकोर्ट ने एक शिकायती मामले की पूरी कार्रवाई रद्द कर दी, जिसमें पति ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी ने तलाक लिए बगैर दूसरी शादी कर ली. इसलिए उसे दंड दिया जाना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर शादी वैध नहीं है तो कानून की नजर में वह विवाह नहीं है. हिंदू कानून के तहत सप्तपदी, एक वैध विवाह का आवश्यक घटक है, लेकिन मौजूदा मामले में इस सबूत की कमी है. हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा सात को आधार बनाया है जिसके मुताबिक, एक हिंदू विवाह पूरे रीति रिवाज से होना चाहिए. जिसमें सप्तपदी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर दूल्हा और दुल्हन द्वारा अग्नि के 7 फेरे लेना उस विवाह को पूर्ण बनाता है।

स्मृति सिंह नाम की महिला की याचिका स्वीकार करते हुए जस्टिस संजय कुमार सिंह ने कहा, ‘यह स्थापित नियम है कि जब तक उचित ढंग से विवाह संपन्न नहीं किया जाता, वह विवाह संपन्न नहीं माना जाता।

अदालत ने मिर्जापुर की अदालत के 21 अप्रैल, 2022 के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसके तहत स्मृति सिंह को समन जारी किया गया था. हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायत में सप्तपदी के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है. इसलिए इस अदालत के विचार से आवेदक के खिलाफ कोई अपराध का मामला नहीं बनता क्योंकि दूसरे विवाह का आरोप निराधार है।

इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय ने कहा है कि बगैर सप्‍तपदी (आग के चारो ओर सात फेरे लेना) और अन्‍य र‍िवाजों के बगैर वैध नहीं है। इस आधार पर, अदालत ने एक शिकायत मामले की कार्यवाही को रद्द कर दिया है, जहां पति ने अपनी अलग हो चुकी पत्नी के लिए सजा की मांग की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसने उससे तलाक लिए बिना दूसरी शादी कर ली है।

स्मृति को हर महीने गुजारा भत्ता मिलते थे, 4 हजार रूपए,

स्मृति सिंह ने भरण पोषण की याचिका भी लगाई। मिर्जापुर फैमिली कोर्ट ने 11 जनवरी, 2021 को सत्यम सिंह को हर महीने चार हजार रुपये भरण पोषण के नाम पर देने का आदेश दिया। यह पैसा उन्हें स्मृति सिंह को तब तक देने का आदेश दिया गया जब तक वह दूसरी शादी नहीं कर लेतीं। इसके बाद सत्यम सिंह ने अपनी पत्नी के ऊपर बगैर तलाक दूसरी शादी करने का आरोप लगाते हुए वाराणसी जिला अदालत में परिवाद दाखिल किया। 20 सितंबर, 2021 को दाखिल इस याचिका पर सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने 21 अप्रैल 2022 में स्मृति सिंह को समन जारी कर पेश होने के लिए कहा। इसके बाद स्मृति सिंह ने हाईकोर्ट का रुख किया, जिस पर हाई कोर्ट ने यह फैसला दिया है।

हिंदू धर्म में विवाह के दौरान सात फेरे लेने की परंपरा को सात जन्मों का बंधन माना गया है। विवाह में दूल्हा-दुल्हन अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं, ताकि वे अगले सात जन्मों तक साथ रह सकें। साथ ही वह पति-पत्नी के रिश्ते को मन, शरीर और आत्मा से निभाने का वादा भी करते हैं। सनातन धर्म में, सात फेरे और सात वचनों का महत्व दो लोगों की आत्मा और शरीर को एक साथ जोड़ना है। माना जाता है कि इन सात फेरों और सात वचनों की वजह से दूल्हा-दुल्हन सात जन्मों तक साथ रहते हैं।

स्मृति सिंह द्वारा दायर एक याचिका को स्वीकार करते हुए, न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा, “यह अच्छी तरह से स्थापित है कि विवाह के संबंध में ‘अनुष्ठान’ शब्द का अर्थ है, ‘उचित समारोहों के साथ और उचित रूप में विवाह का जश्न मनाना’। जब तक विवाह उचित रीति-रिवाजों के साथ संपन्न नहीं किया जाता, तब तक इसे वैध नहीं कहा जा सकता और कानून की दृष्टि में यह विवाह नहीं है। हिंदू कानून के तहत ‘सप्तपदी’ समारोह वैध विवाह के लिए आवश्यक रिवाजों में से एक है।

PTI की रिपोर्ट के मुताबिक स्मृति सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय कुमार सिंह ने कहा कि यह अच्छी तरह से सबको पता है कि विवाह के संबंध में ‘अनुष्ठान’ शब्द का अर्थ उचित समारोहों और उचित रूप में विवाह का जश्न मनाना है. जब तक विवाह का जश्न उचित समारोहों और उचित तरीके से नहीं मनाया जाता, तब तक इसे पूरी तरह से संपन्न नहीं कहा जा सकता।

कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 का भी जिक्र किया, जिसमें यह प्रावधान है कि हिंदू विवाह किसी भी पक्ष के पारंपरिक संस्कारों और समारोहों के मुताबिक पूरा किया जा सकता है।

दूसरे, ऐसे संस्कारों और समारोहों में ‘सप्तपदी’ यानी दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के चारों ओर एक साथ सात फेरे शामिल है. सातवां कदम उठाने पर विवाह को संपन्न माना जाता है।

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