News

सुप्रीम कोर्ट: निकृष्ट अहंकारी हैं श्रम विभाग के अधिकारी

संयम भारत

व्यूरो,नैनी, प्रयागराज। उत्तर प्रदेश श्रम विभाग के अधिकारी इतने निकृष्ट अहंकारी हो गए हैं कि अपने आप को सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर समझने लगे हैं।
यही कारण है कि जिस मामले को सर्वोच्च न्यायालय में स्वत: संज्ञान में लेते हुए जनहित याचिका के रूप में दर्ज करने का आदेश दिया। उस प्रकरण को लेकर उत्तर प्रदेश श्रम विभाग के अधिकारी से लेकर श्रम मंत्री तक चुप्पी साधे हुए हैं।
इस मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह लोग लगातार बारंबार गुमराह कर रहे हैं। इस वजह से उत्तर प्रदेश की औद्योगिक श्रमिक बस्तियों में पिछले 34 वर्षों से वहां के निवासियों को उनके आवासो का मालिकाना अधिकार दिए जाने का मामला आज भी लंबित है. देश के सभी राज्यों ने केंद्र सरकार के आदेश अनुसार उत्तर प्रदेश की औद्योगिक श्रमिक बस्तियों में रहने वाले लोगों को उनके आवासों का मालिकाना अधिकार दिए जाने का आदेश दिया था।
इस आदेश का पालन करते हुए देश के लगभग आधा दर्जन से भी अधिक राज्यों ने लागत मूल्य पर उस प्रदेश के निवासियों को उनके आवासों का मालिकाना अधिकार दे दिया। लेकिन उत्तर प्रदेश श्रम विभाग उल्टी गंगा बहा रहा है। यह लोग शासन को गुमराह करके अपनी मनमानी कर रहे हैं और भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए मालिकाना अधिकार दिए जाने में आनाकानी कर रहे हैं। यही नहीं उत्तर प्रदेश श्रम विभाग प्रयागराज कार्यालय ने तो अंधेरगर्दी की हद कर दी।
संयुक्त राष्ट्र संघ एवं सेना द्वारा बनाई गई गाइडलाइन एवं मानकों का उल्लंघन करते हुए सारे नियम कानून को बलाए ताक पर रखते हुए श्रमिक बस्ती, नैनी के बीचो-बीच अर्धसैनिक बल का शस्त्रागार स्थापित करवा दिया है। जिसमें कई कुंतल गोला बारूद और विस्फोटक सामग्री है। यदि इसमें कभी कोई भी विस्फोट हो गया तो सैकड़ो लोगों की जान जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र संघ की यह स्पष्ट गाइडलाइन है कि कोई भी सैन्य शस्त्रागार नागरिक आबादी से कई किलोमीटर दूर होना चाहिए। लेकिन उत्तर प्रदेश श्रम विभाग का एक भ्रष्ट अधिकारी पूर्व उप श्रम आयुक्त राकेश द्विवेदी ने अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए पीएसी के अधिकारियों से भारी रिश्वत लेकर अवैध तरीके से उसने श्रम विभाग की जमीन पुलिस विभाग पीएसी को दे दी। स्थिति यह है की 42वीं वाहिनी पीएसी के लोगों ने बच्चों के खेलने के पार्क पर कब्जा कर लिया है। घनी नागरिक आबादी क्षेत्र में पीएसी वाले खुलेआम गुंडई कर रहे हैं। इस कॉलोनी का निर्माण मजदूरों के लिए किया गया था। श्रम विभाग ने बिना शासन की अनुमति के पीएसी को कैसे दे दिया?
इस मामले को लेकर के पिछले दिनों श्रमिक बस्ती समिति के महासचिव, प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता विनय मिश्र ने एक साधारण प्रार्थना पत्र सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को कार्रवाई हेतु भेजा था। मामले की गंभीरता और संवेदनशीलता को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को जनहित याचिका के रूप में दर्ज करते हुए कार्रवाई का आदेश दिया। सर्वोच्च न्यायालय में भेजे गए पत्र में जो मुद्दे उठाए गए थे। उन मुद्दों को न्यायालय ने तो गंभीरता से लिया। लेकिन पिछले कई वर्षों से श्रम विभाग के अधिकारियों के पास अब तक सैकड़ो बार पत्र भेजे जा चुके हैं। यह लोग उन पत्रों को रद्दी टोकरी में उठाकर फेंक देते हैं। कोई कार्रवाई नहीं करते। इनका अहंकार इतना निकृष्ट और चरम सीमा पर पहुंच गया है कि अब योगी जी को खुद सीधे इनके विरुद्ध कार्रवाई करना पड़ेगा। वरना यह लोग उत्तर प्रदेश श्रमिक बस्ती मालिकाना अधिकार के मामले में इसी तरह प्रदेश के मुख्यमंत्री और श्रमिकों को गुमराह करते रहेंगे।
पिछले दिनों विधानसभा में इस मामले को उठाया गया। समाजवादी पार्टी के विधायक अरमान अली ने प्रश्न उठाया था। भारतीय जनता पार्टी के विधायक मैथानी साहब भी इस मामले को लेकर कई बार विधानसभा में सवाल उठा चुके हैं। विधानसभा अध्यक्ष ने भी इस मामले में उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्री को कार्रवाई करने का आदेश दिया। बैठक भी हुई। लेकिन आज तक इस मामले पर अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ और अब कहा जा रहा है कि 5 महीने अभी समय और लगेगा।
इन लोगों को पता नहीं कौन सी खिचड़ी पकानी है। जो समय लगेगा। जबकि दर्जनों बार सर्वे हो चुका है। कई बार समितियों की कानपुर में बैठक हो चुकी है।
केंद्र सरकार का आदेश व सारे रिकॉर्ड श्रम विभाग के पास है। इनको बैठक करके प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजना है। उस प्रस्ताव को भेजने के लिए इनको इतना समय क्यों लग रहा है? यही नहीं उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्री अनिल राजभर श्रम आयुक्त से लेकर तमाम अधिकारियों को उत्तर प्रदेश श्रम विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की शिकायत की गई थी कि प्रयागराज के पूर्व पूर्व उप श्रम आयुक्त राकेश द्विवेदी ने करोड़ों रुपए का गबन किया और राजकीय श्रम हितकारी केंद्र नैनी प्रयागराज की सरकारी संपत्ति बेच डाली और अवैध तरीके से वह श्रम अधिकारी केंद्र जो मजदूरों के लिए बनाया गया था। उसे पीएसी पुलिस विभाग को दे दिया। जबकि कायदे से नियम यह है कि किसी भी सरकारी विभाग की भूमि किसी दूसरे विभाग को स्थानांतरित करने के लिए शासन के द्वारा प्रस्ताव तैयार किया जाता है। लेकिन यहां पर तैनात रहा भूतपूर्व उप श्रम आयुक्त जो कि रात में यहां ट्राली लगाकर राजकीय श्रम हितकारी केंद्र का चोरी करवाता था। यहां पर तैनात रहा गृह निरीक्षक गुलाबचंद इस गबन, घोटाला, भ्रष्टाचार और सामान चुराने का मुख्य अभियुक्त और साजिशकर्ता है। उसके विरुद्ध भी शिकायत की गई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। बच्चों के खेलने के उपकरण, अस्पताल का सामान सारा सामान बेचकर खा गया और इसकी शिकायत लेबर कमिश्नर, कानपुर से की गई। लेबर कमिश्नर ने पांच बार जांच का आदेश दिया। लेकिन आज तक राकेश द्विवेदी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई।
यह राजकीय श्रम हितकारी केंद्र बेजार है।
यहां पर 42 वीं वाहिनी पीएसी वालों ने कब्जा कर लिया है और अब यहां किसी को नहीं जाने देते। पार्क में बच्चे खेलते थे। उस पार्क में अब कूड़ा फेंका जा रहा है और जंगल उग आया है। लोग विभाग के खिलाफ आंदोलन कार्रवाई करने के लिए अब धरना प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय में भेजे गए पत्र को जनहित याचिका के रूप में दर्ज किए जाने के संबंध में महासचिव विनय मिश्र ने बताया है कि उनके प्रार्थना पत्र को जनहित याचिका के रूप में दर्ज कर लिया गया था। लेकिन बाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह बताया गया कि जनहित याचिका के संबंध में जो गाइडलाइन है। उसे गाइडलाइंस के तहत यह केस आच्छादित नहीं है। इस वजह से इस मामले को निस्तारित कर दिया गया और यह बात सही भी है कि यदि किसी मामले का शिकायत कर्ता से कोई संबंध है और उसका निजी लाभ निहित है। तो याचिकाकर्ता पक्षकार नहीं हो सकता। यही कारण है कि 3 महीने तक अंडर प्रोसेस रहने के बाद इस मामले को तकनीकी आधार पर निस्तारित किया गया। क्योंकि जनहित याचिका के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का यह मानक है कि जनहित याचिकाकर्ता वही हो सकता है। जिसका उस मामले से कोई संबंध न हो। जबकि इस प्रकरण में विनय मिश्र को सर्वोच्च न्यायालय ने पक्षकार बनाया। जबकि विनय मिश्र इस मामले को लेकर जनहित याचिका का पक्षकार होने की अर्हता नहीं है। क्योंकि श्रमिक बस्ती में वे रहते हैं। इसलिए उनका इस कॉलोनी से व्यक्तिगत संबंध है। जिस मामले से जिसका कोई व्यक्तिगत संबंध हो। वह जनहित याचिकाकर्ता नही हो सकता। ऐसी सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है। विनय मिश्र लाभान्वित होने वाले लोगों में से हैं। और उनका इसमें व्यक्तिगत लाभ है। इस तकनीकी आधार पर केस को गाइडलाइंस के तहत कवर्ड नहीं माना गया। लेकिन कोई दूसरा आदमी अगर इस मामले को लेकर पीआईएल दाखिल कर देगा, तो श्रम विभाग के अधिकारी और उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारी सर्वोच्च न्यायालय के सामने हनुमान चालीसा पढ़ते हुए नजर आएंगे। अभी भी समय है। इन लोगों को तुरंत एक्शन लेना चाहिए।
फिर भी सर्वोच्च न्यायालय को इस बात के लिए बहुत-बहुत बधाई दी जानी चाहिए कि जनहित के मामले को उन्होंने उसे स्वीकार किया। तकनीकी आधार पर वह आगे नहीं बढ़ सका। तो उसके लिए सर्वोच्च न्यायालय की कोई गलती नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय का लोगों को शुक्रगुजार होना चाहिए कि उसने उनकी समस्या को सुना। पहल की और कार्रवाई हुई।
लेकिन श्रम विभाग के अधिकारियों का अहंकार चरम सीमा पर है। उनको यह नहीं पता है कि सर्वोच्च न्यायालय में दरवाजा खुल चुका है। जिस दिन सारे प्रकरण को एक शिकायत के तौर पर सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञान में ले लिया तो सरकार की फजीहत होगी। सरकार की फजीहत कराने के लिए लगता है श्रम विभाग के द्वारा कोई घिनौनी साजिश रची जा रही है। जिस वजह से इस मामले को लटकाया जा रहा है।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *