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सुप्रीम कोर्ट की सामूहिक सजा पर अहम टिप्पणी: घरों का विध्वंस मानवाधिकारों का उल्लंघन

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में “सामूहिक सजा” के खिलाफ महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की हैं, विशेष रूप से जब राज्य द्वारा अपराधियों के घरों को नष्ट किया जाता है। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसे कानून के शासन और मानवाधिकारों के खिलाफ करार दिया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की सजा निर्दोष लोगों को परेशान करती है, जो किसी अपराध में शामिल नहीं होते।

निर्दोष पक्षों का नुकसान
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घरों का विध्वंस एक सामूहिक सजा की तरह कार्य करता है, जिससे परिवार के सदस्यों, जैसे कि पत्नी और बच्चों, को बिना किसी अपराध के सजा मिलती है। न्यायमूर्ति गवई ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को दोषी ठहराए जाने से पहले उसे निर्दोष माना जाता है, और इसलिए, बिना किसी वैध कारण के घरों को नष्ट करना संविधान के तहत निर्धारित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

सामूहिक सजा से बचाव और संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा
कोर्ट ने यह भी कहा कि घरों का विध्वंस न केवल व्यक्ति के जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है, बल्कि इससे नागरिकों की गरिमा भी प्रभावित होती है। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी जोर दिया कि राज्य को किसी भी प्रकार की सजा देने का अधिकार नहीं है, जब तक कि न्यायालय ने इसे सही ठहराया हो।

न्यायपालिका की भूमिका और संस्थागत जवाबदेही
जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया, न्यायपालिका को यह अधिकार है कि वह किसी व्यक्ति की दोषी या निर्दोष स्थिति का निर्धारण करे। अदालत ने कहा कि अगर कोई सार्वजनिक अधिकारी मनमाने तरीके से कार्रवाई करता है, तो उसे न्यायिक समीक्षा के तहत लाना चाहिए। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि किसी भी प्रकार का विध्वंस किसी पूर्वाग्रह या दुर्भावना से प्रेरित न हो।

घर की अहमियत और स्थिरता का प्रतीक
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि घर सिर्फ एक इमारत नहीं है, बल्कि यह एक व्यक्ति और उसके परिवार के लिए सुरक्षा, स्थिरता और भविष्य की उम्मीद का प्रतीक है। इस कारण से, घरों का विध्वंस केवल अंतिम उपाय के रूप में किया जाना चाहिए, जब अन्य विकल्पों का कोई अस्तित्व न हो।

निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और राज्य के शक्ति के सीमित उपयोग की महत्वपूर्ण गवाही है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि बिना उचित न्यायिक प्रक्रिया और वैकल्पिक उपायों के घरों का विध्वंस नहीं किया जा सकता। यह फैसला न केवल मानवाधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि न्याय की प्रक्रिया और संविधान की सर्वोच्चता को भी सुनिश्चित करता है।

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