हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में ‘कहानी-दर -कहानी’ संदर्भ ‘कहानी पाठ’ एवं पुस्तक प्रदर्षनी का हुआ आयोजन
प्रयागराज, संयम भारत, दिनांक 18 मार्च 2024, सोमवार, अपराह्न 3ः00 बजे गाँधी सभागार, हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ0प्र0, प्रयागराज में आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंचासीन अतिथियों का सम्मान स्वागत शाल, पुष्पगुच्छ एवं प्रतीक चिह्न देकर एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। सर्व प्रथम अतिथियों ने महिला कथाकारों की पुस्तक प्रदर्शनी का अवलोकन किया। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि ‘ मेरा मानना है कि जब से मानव जीवन है तभी से कहानी है जितने भी लोग होंगे चंदा मामा की कहानी सब ने सुनी होगी। देखा जाए तो आदिम काल से ही कहानी है।

जब से सभ्यता का विकास हुआ है तब से कहानी है। कहानी हर जगह मौजूद है, पर हां कहानी का स्वरूप बदलता गया। आज हम कहानी को कैसे सुरुचिपूर्ण से बनाएं जो समाज को एक नया कलेवर प्रदान करें यह चिंतन का विषय है। क्योंकि ऐसी कहानी ही है जो समाज को रचा गढ़ा है। कई ऐसी कहानी है जिससे जीवन के दृष्टिकोण में बदल बदलाव आया है। आज हम उसी को जानने प्रयास करेंगे।’ कहानी पाठ की अध्यक्षता करते हुय प्रो. अनिता गोपेश, कथा लेखिका ने ‘समकालीन कहानी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कहानियाँ अपने समय को रेखांकित करती हैं। आज हामरा समाज विसंगतियों से गुजर रहा है। कई सारी घटनायें एक साथ घटित हो रही हैं।’ कार्यक्रम में कथाकार प्रो. अलका पाण्डेय, आचार्य हिन्दी विभाग लखनऊ विश्वविद्याल, लखनऊ ने अपनी कहानी स्वपन की शुरुवात का पाठ किया इसमें उन्होंने ‘बेटिया ंतो चिड़िया के समान उन्हें उड़ जाना है जैसे रैन बसेरे के बाद चिड़िया पेड़ छोड़कर उड़ जाती है, इस तरह बेटी भी माँ को छोड़कर ससुराल चली जाएगी। चिड़िया के उड़ जाने के बाद पेड़ का सूनापन और बेटी के जाने के बाद माँ का अकेलापन बहुत ही प्रखर हो उठता है।’ कथाकार लेखिका एवं कवयित्री ज्योतिर्मयी ने कहा कि ‘हर किसी ने बचपन में अपनी दादी नानी के किस्सों से अपनी दुनिया सजायी होगी। हमारी स्मृतियों में कितना कुछ इन किस्सों से भरा हुआ है। हमने इनसे कितना कुछ पाया है और कितना कुछ जोड़ा है। किस्सा गोई का चलन हमारे बीच लोक कथाओं से आया है न जाने कितने कुछ हमने इन लोक कथाओं से ग्रहण किया है। पर आज बचचों की दुनिया डिजिटल वर्ल्ड में बदलती जा रही है। आज नये और पुराने के बीच फँसी कश्मकश में बढते द्वन्द्व को रेखांकित करती ‘गली के मुहाने पर’ का कहानी का पाठ किया’। कार्यक्रम में कथाकार शाम्भवी ने ‘सांझा की धूप’ का कहानी पाठ किया। परिवारवाद में दो पीढ़ियों के बीच कम्युनिकेशन गैप की पीड़ा दर्शाती सशक्त कहानी है ‘सांझा की धूप’। संगोष्ठी का संचालन अनिता यादव ने एंव कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के प्रशासनिक अधिकारी गोपालजी पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित विद्वानों में डा. उमा शर्मा, मिली श्रीवास्तव, सरस दरबारी, रचना सक्सेना, स्नेह सुधा, उर्वशी उपाध्याय, विवेक सत्यांशु, जयश्री श्रीवास्तव, अभिषेक केसरवानी रवि, मधुकर मिश्रा, उमेश श्रीवास्तव, एम.एस खान, राधा शुक्ला आदि के साथ शहर के अन्य रचनाकार एवं शोध छात्र भी उपस्थित थे।