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बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका: एंरोलमेंट फीस बढ़ाकर 25,000 रुपये करने की मांग

 

भारत में न्यायिक प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI), एक महत्वपूर्ण याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। इस याचिका में BCI ने एंरोलमेंट फीस को बढ़ाकर 25,000 रुपये करने की अपील की है। फिलहाल, एंरोलमेंट फीस 750 रुपये निर्धारित है, जो 1961 के एडवोकेट एक्ट के तहत तय की गई थी। BCI का कहना है कि वर्तमान फीस संरचना काउंसिल को वित्तीय संकट में डाल रही है, और अगर फीस में वृद्धि नहीं की जाती तो काउंसिल अपने कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करने में सक्षम नहीं हो पाएगी।

इस याचिका का दायर किया जाना ‘गौरव कुमार बनाम भारत संघ’ मामले से संबंधित है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में निर्णय दिया था कि एंरोलमेंट फीस को 750 रुपये से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता। इस निर्णय को चुनौती देते हुए BCI ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और एंरोलमेंट फीस को बढ़ाकर 25,000 रुपये करने की मांग की।

1. बार काउंसिल ऑफ इंडिया की वित्तीय तंगी और समस्या

बीसीआई का कहना है कि वर्तमान वित्तीय स्थिति में काउंसिल को राज्य बार काउंसिलों के साथ मिलकर अपनी गतिविधियों को संचालित करने में दिक्कत हो रही है। 1961 के एडवोकेट एक्ट में एंरोलमेंट फीस को 750 रुपये तक सीमित किया गया था। लेकिन, बीसीआई का मानना है कि यह शुल्क इतने कम होने के कारण काउंसिल को पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं मिल पाते हैं, जिससे काउंसिल की कार्यप्रणाली प्रभावित हो रही है।

विशेष रूप से, राज्य बार काउंसिलों को 600 रुपये से अधिक फीस लेने की अनुमति नहीं है, जिससे राज्य काउंसिल भी वित्तीय संकट से जूझ रही हैं। बीसीआई के अनुसार, अगर यह समस्या हल नहीं की जाती, तो काउंसिलों की स्थिति और भी दयनीय हो सकती है। यही कारण है कि बीसीआई ने एंरोलमेंट फीस को बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

2. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और बीसीआई की याचिका

सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2024 के निर्णय में कहा गया था कि बीसीआई और राज्य बार काउंसिल एंरोलमेंट फीस को 750 रुपये से अधिक नहीं बढ़ा सकते। इस निर्णय के बाद, बीसीआई ने अपनी याचिका में कोर्ट से अपील की कि वह 1961 के एडवोकेट एक्ट में संशोधन कर एंरोलमेंट फीस को 25,000 रुपये तक बढ़ाने की अनुमति दे।

इसके साथ ही, बीसीआई ने सामान्य वर्ग के लिए निधि शुल्क 6,250 रुपये करने की भी मांग की है। SC/ST वर्ग के लिए यह शुल्क क्रमशः 10,000 रुपये और 2,500 रुपये करने का प्रस्ताव दिया गया है। बीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा कि वह रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के मुद्रास्फीति कैलकुलेटर के आधार पर फीस को समय-समय पर संशोधित करने की स्वतंत्रता चाहते हैं।

3. न्यायालय का रुख और अटॉर्नी जनरल की भूमिका

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में हैरानी जताई और सवाल किया कि इस मुद्दे पर अदालत की भूमिका क्या हो सकती है। इस पर बीसीआई के वरिष्ठ वकील और अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने यह स्पष्ट किया कि यदि एंरोलमेंट फीस में वृद्धि नहीं की जाती है, तो काउंसिल के पास कामकाजी खर्चों को पूरा करने का कोई रास्ता नहीं होगा।

इसके अलावा, अदालत ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से भी इस मामले पर मदद मांगी। अटॉर्नी जनरल को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि इस मुद्दे पर कोई संवैधानिक और कानूनी सवाल न उत्पन्न हो, और बीसीआई की मांग पर एक स्पष्ट राय दी जा सके।

4. वर्तमान एंरोलमेंट फीस का इतिहास और इसका प्रभाव

1961 में जब एडवोकेट एक्ट को पारित किया गया था, तब एंरोलमेंट फीस 600 रुपये निर्धारित की गई थी। इसे 1993 में संशोधित किया गया और 750 रुपये किया गया। यह फीस अब तक उसी स्तर पर बनी हुई है। बीसीआई का कहना है कि इस फीस में किसी भी प्रकार की वृद्धि नहीं होने के कारण काउंसिल के पास संसाधन सीमित हो गए हैं, जिससे काउंसिल की कार्यप्रणाली प्रभावित हो रही है।

बीसीआई का कहना है कि वर्तमान में राज्य बार काउंसिलों को जितना शुल्क मिल रहा है, वह उनके कामकाजी खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। उदाहरण के लिए, कर्मचारियों का वेतन, काउंसिल के संचालन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का रखरखाव और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए फंड की आवश्यकता है।

5. बीसीआई के प्रस्ताव और संभावित प्रभाव

बीसीआई के प्रस्ताव के मुताबिक, एंरोलमेंट फीस को 25,000 रुपये करने से काउंसिल के पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन आएंगे, जिससे वह अपने विभिन्न कार्यों को बेहतर तरीके से कर सकेगा। इसके अलावा, काउंसिल की कार्यप्रणाली को मजबूत किया जा सकेगा, और नए वकीलों के लिए प्रशिक्षण और संसाधनों की व्यवस्था करना आसान हो जाएगा।

इससे देशभर में वकीलों की संख्या और गुणवत्ता दोनों में सुधार हो सकता है। इसके अलावा, काउंसिल को अपनी सेवाओं को बेहतर बनाने और न्यायिक प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने का अवसर मिलेगा।

6. निष्कर्ष

बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो भारतीय न्यायिक प्रणाली के सुधार से जुड़ा हुआ है। एंरोलमेंट फीस की वृद्धि से बीसीआई और राज्य बार काउंसिलों को वित्तीय संकट से उबरने में मदद मिल सकती है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया और वकीलों की शिक्षा में सुधार हो सकता है।

हालांकि, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह निर्णय पूरे देश में वकीलों के लिए फीस संरचना को प्रभावित करेगा। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर क्या कदम उठाता है और क्या बीसीआई की फीस वृद्धि की मांग को मंजूरी मिलती है।

यह याचिका न केवल न्यायिक प्रणाली के लिए, बल्कि भारतीय वकीलों के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, जो उनके कामकाजी परिस्थितियों और भविष्य को प्रभावित करेगा।

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