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अतुल सुभाष की मां को सुप्रीम कोर्ट से झटका (Atul subhash case)

नई दिल्ली, 8 जनवरी 2025: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसले में अतुल सुभाष की मां को उनके पोते की कस्टडी देने से इनकार कर दिया। यह मामला मीडिया में काफी चर्चा में रहा, क्योंकि यह एक संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा था, जिसमें परिवार के सदस्यों के बीच कस्टडी के अधिकार को लेकर विवाद था। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि बच्चे की दादी उसके लिए पूरी तरह से अजनबी हैं और यदि वह बच्चे की कस्टडी चाहती हैं, तो इसके लिए एक अलग कानूनी प्रक्रिया अपनानी होगी।

*कोर्ट का निर्णय और तर्क*

सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह शामिल थे, जिन्होंने मामले की सुनवाई की। अदालत ने कहा कि बच्चा याचिकाकर्ता के लिए अजनबी है और उसे कस्टडी देने का सवाल एक अन्य अदालत के समक्ष उठाया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह निर्णय देते हुए दुख हो रहा है, लेकिन कानून के तहत कस्टडी का अधिकार निर्धारित किया जाता है, और चूंकि दादी बच्चे के लिए अजनबी हैं, इसलिए उन्हें यह कस्टडी नहीं दी जा सकती।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह सलाह भी दी कि अगर वह चाहें तो बच्चे से मिल सकते हैं, लेकिन यदि कस्टडी प्राप्त करनी है तो इसके लिए उन्हें एक अलग कानूनी प्रक्रिया अपनानी होगी। इस फैसले से यह साफ हो गया कि बच्चों की कस्टडी में परिवार के बीच संबंधों को देखा जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि बच्चे की भलाई सर्वोपरि हो।

*मामला क्या था?*

यह मामला अतुल सुभाष की मृत्यु के बाद उत्पन्न हुआ। 34 वर्षीय अतुल सुभाष 9 दिसंबर 2024 को बेंगलुरु के मुन्नेकोलालू इलाके में स्थित अपने घर में मृत पाए गए थे। पुलिस जांच में पता चला कि उनकी मृत्यु आत्महत्या के कारण हुई थी। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि अतुल ने अपनी मौत से पहले एक सुसाइड नोट छोड़ा था। इस नोट में उन्होंने अपनी पत्नी और ससुराल वालों को अपनी आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया था।

अतुल के निधन के बाद, उनकी मां ने अपने पोते की कस्टडी के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका कहना था कि पोते के लिए वह एक अच्छे संरक्षक साबित हो सकती हैं और बच्चे को उनकी देखरेख में रखा जाना चाहिए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कस्टडी की याचिका को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि यह मामला केवल कस्टडी के अधिकार के बारे में नहीं था, बल्कि बच्चे की भलाई और उस पर उसके रिश्तेदारों के प्रभाव के बारे में भी था।

*कस्टडी का मामला और परिवार की जिम्मेदारी*

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय परिवार के भीतर कस्टडी के मामलों को लेकर एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। बच्चों की कस्टडी के मामलों में केवल रक्त संबंध ही नहीं, बल्कि बच्चे के लिए स्थिर और सुरक्षित वातावरण भी महत्वपूर्ण होता है। अदालत ने कहा कि यदि दादी बच्चे से अजनबी हैं, तो इससे बच्चे की मानसिक स्थिति और भावनात्मक सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है।

भारत में कस्टडी के मामलों में बच्चों की भलाई को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। अक्सर देखा जाता है कि परिवार में अलगाव और संघर्ष के कारण बच्चों को मानसिक और भावनात्मक तनाव का सामना करना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया कि कस्टडी का मामला सिर्फ कानूनी अधिकारों पर आधारित नहीं होता, बल्कि यह सुनिश्चित करना होता है कि बच्चे का भला हो।

*कानूनी प्रक्रिया और बच्चे की भलाई*

कस्टडी से संबंधित मामलों में भारतीय कानून यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों की देखरेख और पालन-पोषण ऐसे परिवार के हाथों में हो, जो उसे अच्छे संस्कार और सुरक्षित वातावरण दे सके। अदालत ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता को कस्टडी चाहिए, तो उन्हें इस संबंध में एक अलग कानूनी प्रक्रिया अपनानी होगी। इस प्रक्रिया में बच्चे के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखा जाएगा और यदि अदालत को यह लगता है कि दादी बच्चे के लिए सही संरक्षक हो सकती हैं, तो कस्टडी दी जा सकती है।

कई बार यह देखा गया है कि परिवार के अन्य सदस्य, जैसे दादी-नानी, कस्टडी की मांग करते हैं, लेकिन बच्चों के लिए यह अहम होता है कि वह जहां रह रहे हैं, वहां मानसिक और शारीरिक सुरक्षा हो। इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने दादी के लिए यह तय किया कि वह बच्चे के लिए अजनबी हैं और उन्हें कस्टडी नहीं दी जा सकती।

*अतुल सुभाष की मौत और परिवार का दर्द*

अतुल सुभाष की मौत परिवार के लिए एक बड़ी त्रासदी थी। उनकी आत्महत्या के कारण उनके परिवार में तनाव और भावनात्मक संकट था। सुसाइड नोट में अतुल ने अपनी पत्नी और ससुराल वालों को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया था, जो कि एक गंभीर आरोप था। इस घटना ने न केवल परिवार के सदस्यों को झकझोर दिया, बल्कि समाज में भी एक गंभीर चर्चा का विषय बना। यह घटना दिखाती है कि परिवारों में मानसिक स्वास्थ्य और आपसी विवादों का प्रभाव कितना गहरा हो सकता है। अतुल की मौत के बाद परिवार के सदस्य भी परेशान और संवेदनशील हो गए, और अब कस्टडी का मामला एक और विवाद का रूप ले चुका था।

*निष्कर्ष*

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला परिवारों के भीतर कस्टडी के मामलों में संवेदनशीलता और बच्चों की भलाई को प्राथमिकता देने का संदेश देता है। कस्टडी का मामला केवल कानूनी अधिकारों का नहीं, बल्कि बच्चे के भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य का भी है। अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि इस मामले में बच्चे की भलाई को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी और दादी को कस्टडी देने का फैसला नहीं लिया गया। अब यह देखना होगा कि आगे इस मामले में क्या होता है और क्या याचिकाकर्ता एक नई प्रक्रिया के तहत कस्टडी प्राप्त करने में सफल होते हैं।

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